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द्रौपदी मुर्मू की जीवनी

Draupadi Murmu Biography | An Unbelievable Journey From a Small Village to Rashtrapati Bhawan

द्रौपदी मुर्मू की जीवनी | एक छोटे से गाँव से राष्ट्रपति भवन तक का अविश्वसनीय सफ़र

आज हम जिनकी बात करने जा रहे हैं, उनकी अनसुनी कहानी को सुन कर कोई भी व्यक्ति भावुक भी होगा, और साथ-साथ आपको प्रेणना भी मिलेगी और आप उत्साहित भी होंगें। यह कहानी है उस महिला की जिसने ४ साल में ही अपने २ जवान बेटों के साथ पति को भी खोया। वो अन्दर से पूरी तरह से टूट चुकीं थी, लेकिन उन्होंने आत्मविश्वास को नही खोने दिया, और साथ ही उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया, और life में पुन: ऐसी वापसी की, कि वो भारत की प्रथम नागरिक चुनी जा चुकिं हैं। अब वो भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन हो चुकीं हैं। वो और कोई नही भारत की पहली आदिवासी महीला राष्ट्रपति Smt. Draupadi Murmu हैं। यह उनके आत्मविश्वास और परिश्रम का ही नतीजा है, कि आज द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा के मयुरभंज में छोटे से मकान में रहने वाली अब कई एकड़ के राष्ट्रपति भवन में रहेंगीं।

Draupadi Murmu Biography
Draupadi Murmu Biography

उनकी कहानी उन सभी आम आदमियों को शक्ति देगी, जो एक आम नागरिक की तरह दिन रात मेहनत करके, अपने परिवार का पेट पालते है। अगर किसी को भी यह लगता है, कि हालात उनके पक्ष में नही है, हालात कमजोर हैं, वख्त सही नही चल रहा है तो आप सभी द्रौपदी मुर्मू की अविश्वसनीय सफ़र को जरूर पढ़ें।

-हो सकता है उनकी कहानी आपकी जिन्दगी और आपकी सोच बदल दे।

  • क्यूँकी आपको नही पता की आपकी मेहनत, आपका परिश्रम, आपकी जिन्दगीं में कब खुशियों के रंग भर दे।

जब द्रौपदी मुर्मू  झारखण्ड की राज्यपाल चुनी गई थीं, तब वो राष्ट्रपति भवन में उस समय के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से मिलने पहुँचीं थीं।

  • तो शायद उन्हें भी यह अंदाजा नही होगा कि, वही भारत की अगली राष्ट्रपति चुनी जायेंगीं।

Draupadi Murmu का प्रारम्भिक जीवन

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को, उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से करीब 300 किलोमीटर दूर मयूरभंज जिले के उपरबेडा, एक जनजातीय क्षेत्र में हुआ था। संथाल आदिवासी परिवार में जन्मी, द्रौपदी मुर्मू के परिवार में उस समय किसी को भी यह अंदाजा नही होगा कि Draupadi Murmu असाधारण प्रतिभा की धनि निकलेंगीं। किसी के लिए भी यकीन कर पाना मुश्किल होगा की उस घर में, उस परिस्तिथि में जन्मी द्रौपदी मुर्मू का संघर्ष करोड़ों भारतियों के लिए प्रेणना बन जाएगा।

द्रौपदी मुर्मू की जन्म स्थली
द्रौपदी मुर्मू की जन्म स्थली

उनके पिता बिरंची नारायण टुडू और दादा दोनों ही गाँव के सरपंच रहे हैं।

उनकी शादी श्री श्याम चरण मुर्मू से हुई। दोनों के तीन बच्चे हुए जिनमें दो बेटे और एक बेटी हुई।

Draupadi Murmu की शिक्षा

  • उड़ीसा, संथाल आदिवासी परिवार में जन्मी द्रौपदी मुर्मू को बचपन से ही पढाई-लिखाई में दिलचस्पी रही है।
  • गाँव से ही कुछ दूरी पर एक सरकारी स्कूल मौजूद है, जहाँ उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ली थी।
Draupadi Murmu Primary School
Primary School
  • माध्यमिक शिक्षा के लिए गाँव में विकल्प मौजूद नही थे।
Draupadi Murmu | Secondary School and it's Hostel
Secondary School and it’s Hostel
  • उनकी प्रतिभा को देख कर उन्हें भुवनेश्वर, आगे की पढाई के लिए भेज दिया गया।
  • एक सूदूर जनजातीय क्षेत्र से द्रौपदी अब सीधे पहुँच गईं, प्रदेश की राजधानी भुवनेश्वर में।
  • उच्च शिक्षा बेहतर भविष्य के लिए रास्ता तैयार करती है। यह उनको अच्छी तरह से पता था।
  • १९७५ से १९७९ तक स्नातक, रमा देवी कॉलेज से की।
  • रमा देवी कॉलेज आज रमा देवी विश्वविद्यालय बन चूका है।
  • आज भी उनके सहपाठी, और वहाँ के कर्मचारी भी, उनकी लग्नं और परिश्रम को याद करते हैं, और गर्व महसूस करते हैं।
Draupadi Murmu did her Graduation from Rama Devi College, Bhubaneswar
Draupadi Murmu did her Graduation from Rama Devi College, Bhubaneswar
In 2019 Draupadi Murmu was conferred with Honorary Causa
In 2019 Draupadi Murmu was conferred with Honorary Causa

करियर की शुरुआत

  • द्रौपदी मुर्मू ने स्नातक के बाद 1979 से 1983 तक, उड़ीसा सरकार की सिचाई विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में पहली नौकरी की।
  • परिवार की जिम्मेदारी जब आड़े आई तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
  • अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा देने के लिए वो शिक्षक बन गईं।
    • और एक शिक्षक के तौर पर उन्होंने श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर रायरंगपुर में काम किया।
Draupadi Murmu worked as a teacher at Sri Aurobindo Integral Education Centre, Rairangpur, Bhubaneswar
Draupadi Murmu worked as a teacher at Sri Aurobindo Integral Education Centre, Rairangpur, Bhubaneswar

राजनीति के सफ़र की शरुआत

  • Draupadi Murmu समाज के लिए कुछ करना चाहतीं थी।
  • उन्होंने सोचा कि राजनीती में आकर समाज के लिए और भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
  • स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की लग्न को देख कर, वो लोगों के नजरों में आईं।
  • अपने परिश्रम से वहाँ के लोगों के दिल में उन्होंने जगह बना ली थी।
  • उस समय १९९७ में शहर में नगर पंचायत के चुनाव करीब थे।
  • बीजेपी से जुड़े नेताओं ने उनसे वार्ड no. 2 से, काउंसलर (पार्षद)के तौर पर चुनाव लड़ने के लिए आग्रह किया।
  • बहुत समझाने के बाद उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए हाँ भर दी।  
  • चुनाव जीतने के बाद उन्हें रायरंगपुर नगर पचायत का उपाध्यक्ष बनाया गया।
  • द्रौपदी मुर्मू आत्मविश्वास से भरी हुई थीं, परिवार के अलावा समाज को भी कुछ देना चाहतीं।

प्रदेश की राजनीती में Draupadi Murmu का योगदान

नगर पंचायत में किये गए काम और परिश्रम का ही नतीजा रहा, कि उन्हें सन 2000 में 12वी विधान सभा चुनाव में, बीजेपी की ओर से उम्मीदवार बनाया गया।

यह उनकी लोकप्रियता का नतीजा था, कि वो इस चुनाव में भारी मतों से जीतीं।

सन 2000 में अपने ग्रह नगर से निकल कर द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा विधानसभा पहुँचीं।

यहाँ उन्हें जल्द ही मंत्री पद दिया गया।

  • उडीसा में भाजपा और बीजेडी गठबंधन सरकार के दौरान, 6 मार्च 2000 से 6 अगस्त 2002 तक वाणिज्य और परिवाहन विभाग में बतौर स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री के तौर पर जिम्मेदारी दी गई, जो उन्होंने बखूबी निभाई।
  • बाद में मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री रहीं।      

विधान सभा की ग्रह सम्भंधी स्थाई समीति की अध्यक्ष, और अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति संबंधी, समेत कई समीतीयों की सदस्य भी रहीं।

विधानसभा में भी उनकी सूझबूझ और लगन एक मिसाल बनी, और 2007 में उन्हें उड़ीसा विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

2009 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और बीजेडी का एलाइंस टूट चुका था।

इस साल विधानसभा चुनाव में Draupadi Murmu को शिकस्त मिली। और वह एक बार फिर वापस अपने गृह नगर रायरंगपुर लौट आई। 

2010 में उन्हें बीजेपी का मयूरभंज जिले का अध्यक्ष बनाया गया।

द्रौपदी मुर्मू समाज के वंछित तबके की अस्मिता, उनके अधिकार, और उनके मुद्दों को लेकर हमेशा मुखर रही है।

बेटे और पति की मौत का सदमा

उन्हें संगठन को जिले में मजबूत करने की जिम्मेदारी मिली। उन्होंने राजनितिक जीवन में कई सफलताएं हासिल करी।

लेकिन निजी जीवन में, समय ने बार-बार उनकी परीक्षा ली।

हालांकि उनके जीवन में एक मोड़ ऐसा भी आया जब वह पूरी तरह से टूट चुकी थी।

सन 2009 में, २५ साल की उम्र में उनके एक बेटे लक्ष्मण मुर्मू की असमय मौत हो गई।

बेटे की मौत से उन्हें इतना गहरा सदमा लगा कि वो डिप्रेशन में चली गईं।

लेकिन समाज के लिए कुछ सकारात्मक बदलाव करने की इच्छा शक्ति ही थी, कि उन्होंने खुद को हिम्मत देते हुए, अध्यात्म का रास्ता चुना, और ब्रह्मकुमारी संस्था के साथ खुद को जोड़ लिया।

धीरे-धीरे वो डिप्रेशन से बाहर निकलीं, और उन्होंने एक बार फिर खुद को समाज के लिए पूरी तरह से समर्पित कर दिया।

लेकिन परेशानियों ने तो जैसे उनको तोड़ने की कसम ही खा रखी थी।

  • चार साल बाद सन 2013 में उनके दुसरे बेटे सिपुन मुर्मू की भी एक सड़क दुर्घटना में म्रत्यु हो गई।
  • कुछ दिनों के बाद उनकी माँ की म्रत्यु हुई और यही नही कुछ दिन बाद उनके भाई भी नही रहे
  • एक महीने के अन्दर ही उन्होंने अपने परिवार के तीन सदस्यों को खोया।
  • दुखों ने यहीं पीछा नही छोड़ा सन 2014 में उनके पति की भी म्रत्यु हो गई।

आप समझ सकते होंगें की वो समय द्रौपदी मुर्मू के लिए कितना कठिन रहा होगा।

योग और अध्यात्म की सहायता से डिप्रेशन के खिलाफ लड़ाई लड़ी

एक के बाद एक परिवार के सदस्यों को खोना, यह वह दौर था जब द्रौपदी मुर्मू बेहद तनाव और अवसाद में थी, उनके लिए सामन्य जीवन में वापस आना बहुत मुश्किल हो गया था।

जैसा की उन्होंने अध्यात्म से गहरा रिश्ता जोड़ लिया था, फिर से योग और अध्यात्म की सहायता से, डिप्रेशन के खिलाफ लड़ाई लड़ी, उन्होंने मन को मजबूत किया और जिंदगी के उतार-चढ़ाव के बीच सामंजस्य बना लिया।

उन्होंने समाज सेवा से भी खुद को अलग नहीं किया।

अब उनकी family में उनकी बेटी इतिश्री मुर्मू हैं जो बैंक में जॉब करती हैं।

Draupadi Murmu झारखण्ड की राज्यपाल

2014 में, केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी।

2015 में उन्हें झारखण्ड की पहली महीला राज्यपाल नियुक्त किया गया।

उनमें भारतीय संस्कृति, संस्कार और समाज सेवा का जज्बा रचा-बसा हुआ था।

जब द्रौपदी मुर्मू झारखण्ड के राज्य भवन पहुँचीं, तो यहाँ अपने व्यवहार से उन्होंने ना सिर्फ राजभवन के कर्मचारियों का बल्कि पूरे प्रदेश का दिल जीत लिया था।

राजभवन में उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ जंग करने वाले, और आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाले, शहीदों की प्रतिमा लगवाने की शुरुआत की।

यही नहीं बल्कि राज्यपाल रहते हुए प्रदेश में जहां भी जरूरत होती थी, वह जरूर जातीं थी, और खास तौर पर विद्यालयों में छात्राओं को प्रोत्साहित करने के लिए।

बतौर राज्यपाल राज्य में संवैधानिक प्रमुख के रूप में उन्होंने पक्ष विपक्ष दोनों तरफ के नेताओं की बातें सुनी।

जिसका परिणाम ये हुआ, कि विपक्ष के लोग भी उनके मुरीद हो गए।

बल्कि उनके कार्यकाल में राज्य भवन के दरवाजे हर संगठन के लिए खुले रहे।

द्रौपदी मुर्मू  विनम्र स्वभाव के साथ-साथ एक कड़क नेता भी है।

वो हमेशा अपने फैसलों को लेकर अडिग रहतीं हैं।

आदिवासी हितों के मद्देनजर द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल रहते हुए बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और झारखंड के मुक्ति मोर्चा के मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन को नसीहत तक दे डाली थी।

उन्होंने हमेशा अपने विवेक से फैसले लिए, ना कि किसी के दबाव में।

Full NameDraupadi Murmu
Father NameBiranchi Narayan Tudu
Husband NameShyam Charan Murmu
Age64
Birth Date20 June 1958
Birth PlaceUparbeda village of Mayurbhanj District Odisha
 EducationGraduate (B.A.)
ChildrenThree
ProfessionPolitical Leader
Political PartyBJP
LanguageEnglish, Oriya, Hindi

प्रकति  प्रेम

  • द्रौपदी मुर्मू  को प्रकृति से बेहद प्रेम है।
  • जब वो झारखण्ड की राज्यपाल थीं तब वो बड़े स्तर पर पौधारोपण अभियान चलाना चाहतीं थीं।
  • केवल सरकार या समितियों के भरोसे पर्यावरण की रक्षा नही की जा सकती है, इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
  • Grow-Trees.com का प्रोजेक्ट Trees for Tiger, जिसने ओड़िसा में 50 लाख से अधिक पेड़ लगाए।
  • यह सब द्रौपदी मुर्मू के दीमाग की उपज थी।

घर को स्कूल में बदल दिया

द्रौपदी मुर्मू जिनका सुसराल पहाडपुर गाँव में है।

यहाँ अपने घर को स्कूल में बदल दिया, और नाम रखा है श्याम लक्ष्मण सिपुन उच्चतर प्राथमिक विद्यालय।

हर साल अपने बेटों और अपने पति की पुण्यतिथी पर यहाँ जरूर जाती हैं।

2016 में द्रौपदी मुर्मू ने की घोषणा:

म्रत्यु के बाद अपनी ऑंखें रांची के कश्यप मेमोरियल नेत्र अस्पताल को दान करेंगीं।

अंतिम विचार

परस्तिथियों के आगे कभी भी कमजोर मत बनो, बल्कि उन परस्तिथियों को कारण बनाओ, उन्हें अपनी ताकत बनाओ, ताकि आप जीवन में आगे बढ़ सकें और कुछ अच्छा कर सकें। मानवीय जागरूकता और चेतना उसे शिखर तक ले जाती है। द्रौपदी मुर्मू का जीवन कठनाईयों से भरा हुआ रहा है, लेकिन उन्होंने कभी भी हार नही मानी जिसका परिणाम आपके सामने है- कि वो पार्षद से सफ़र शुरू करते हुए आज वो सेना की सर्वोच्च कमांडर बनने जा रहीं हैं।

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Pics Courtesy: Twitter Screengrab / Image Source: Twitter / Narendra Modi @narendramodi, The Hindu @the_hindu

Website Screengrab: Sansad TV Special

The above-mentioned figures have been sourced from various media reports.

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