You are currently viewing पाबिबेन रबारी : एक ऐसी महिला जिन्होंने रबारी कढ़ाई को दुनिया तक पहुँचाया | Incredible Story of Pabiben, Rising From Nothing to Becoming a Successful Entrepreneur
पाबीबेन रबारी : एक ऐसी महिला जिन्होंने रबारी कढ़ाई को दुनिया तक पहुचाया

पाबिबेन रबारी : एक ऐसी महिला जिन्होंने रबारी कढ़ाई को दुनिया तक पहुँचाया | Incredible Story of Pabiben, Rising From Nothing to Becoming a Successful Entrepreneur

पाबिबेन रबारी | Incredible Story of Pabiben Rising From Nothing To Becoming Entrepreneur
Incredible Story of Pabiben Rising From Nothing To Becoming Entrepreneur
(Pabiben Image-Source: https://www.pabiben.com/)

आज हम जिनका जिक्र करने वाले है, यह ऐसी शख्सियत हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग शायद जानते हों। हम ऐसी महिला के बारे में बात कर रहे है जो ज्यादा पढ़ी लिखी नही है, और जिनका जन्म एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनका नाम है पाबिबेन रबारी । जिन्होंने अपने गाँव व समाज में ही नही बल्की पूरे देश और विदेश में अपना नाम बनाया है। 

किसी ने सही कहा है कि –

मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है।

सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।

पाबिबेन रबारी के संघर्ष के बारे में

पाबिबेन का जन्म गुजरात के कच्छ (Kutch) के, एक छोटे से कस्बे कुकडसर (Kukadsar) में हुआ था। चौथी कक्षा के बाद कभी स्कूल नही जा सकीं, क्योंकी कम उम्र में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। परिवार चलाने के लिए उन्होंने अपनी माँ के साथ मजदूरी भी कि, उन्होंने लोगों के घर, कुओं से पानी लाने का काम भी किया, जिसके उन्हें एक रुपया मिलता था। साथ-साथ उन्होंने अपनी छोटी बहनों की परवरिश में भी अपनी  माँ का हाँथ बटाया।

समुदाय की प्रथा

कम उम्र में मजदूरी के साथ-साथ उन्होंने अपनी माँ और दादी से कढाई बुनाई का काम सीखा। जैसा की पाबिबेन, रबारी समुदाय से आतीं हैं, यहाँ की एक प्रथा थी, बेटियां अपने ससुराल के लिए एक खास पारंपरिक कड़ाई बुनाई करे हुए, वो भी अपने हाथों से बने कपडे ले कर जातीं थीं। इस रिवाज के परिणामस्वरूप अक्सर एक लडकी को अपने माता पिता के घर पर रहना पड़ता था।

कभी-कभी तो लडकीयाँ ३५ वर्ष तक की हो जाती थीं।

जब समुदाय के बड़ों को यह अहसास हुआ कि, इस कड़ाई की प्रथा के कारण विवाह में देरी हो रही है, तो उनके द्वारा इस प्रथा पर करीब 1990 में प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

  • Family :
  • Laxmi Bhai Rabari (Husband) & Children – 2 Sons

पाबिबेन रबारी का कला से प्यार

उन्हें इस कला से बहुत प्यार था। वो नही चाहतीं थीं की यह कला समाप्त हो जाये। इसलिए उन्होंने भुज में स्थित कला रक्षक ट्रस्ट के साथ काम करना शुरू कर दिया। यह वो संस्था थी, जो कला के संरक्षण के लिए काम करती थी। पाबिबेन रबारी ने इस संस्था के साथ 12 साल काम किया। 1998 में वह एक रबारी महिला समूह में शामिल हो गई। जिसमें उन्हें जल्द ही समूह के मास्टर कारीगर के रूप में जाना जाने लगा।

पाबिबेन रबारी ने किया नई कला का आविष्कार

इस बीच पाबिबेन और उनके साथ काम करने वाली ढेबरिया महिलाओं ने अपनी डिजाईन की समस्या को हल करने का एक तरीका खोजा, कि कैसे वे समुदाय के नियमों को तोड़े बिना अपने शिल्प को जारी रख सकतीं हैं। उन्होंने नए नियमों का पालन करते हुए–“हरी जरी” नामक एक कला का आविष्कार किया जो रेडीमेड तत्वों के हाँथ और मशीन के अनुप्रयोग का एक मिश्रण है।

पाबिबेन ने पूरे उत्साह व लगन से इस कला में महारत हासिल करी। इस नई कला से विकसित उन्होंने एक ऐसा शौपिंग बैग बनाया जो बहुत जल्दी हिट हुआ। जिसे “पाबी बैग“ के नाम से जाना जाने लगा, जिसे कला रक्षा ट्रस्ट में बनाया गया था।

पाबी बैग नाम कैसे पड़ा

पाबिबेन की शादी समारोह में सुसराल पक्ष की तरफ से कुछ विदेशी पर्यटक शामिल हुए थे। रिटर्न गिफ्ट के रूप में उनके हाँथ के बनाये गए खास बैग विदेशी पर्यटकों को दिए गए।  विदेशी पर्यटकों को यह भेंट बहुत पसंद आई। उन्होंने उनकी कला को बहुत सराहा और उन्होंने इस बैग को “पाबी बैग“ का नाम दे दिया। इससे पाबिबेन का आत्मविश्वास काफी बढ़ा, और उन्होंने महसूस किया कि उनकी इस कला को देश में ही नही, विदेशों में भी पहचान दिलाई जासकती है।

पाबिबेन.कॉम नाम से वेबसाइट को स्थापित कैसे किया ?

पाबिबेन रबारी ने अपनी समुदाय की महिलाओं के उत्थान के लिए अपनी इस कला को व्यवसाय के रूप में देखने का फैसला किया।

हलाकि उनको कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग के बारे में प्रयाप्त जानकारी नही थीं।

जहाँ पाबिबेन 12 सालों से कार्यरत थीं, वहां उनकी मुलाकात श्री नीलेश प्रियदर्शी से हुई।  

नीलेश प्रियदर्शी गुजरात विद्यापीठ के एक शोधकर्ता, जो “कारीगर क्लिनिक“ के विचारों के साथ आए।

जो कारीगरों के लिए भारत का पहला ग्रामीण व्यापार क्लिनिक है।

जहाँ वे कारीगरों के लिए एक व्यावसायिक स्वास्थ्य जाँच की सेवा प्रदान करते हैं।

पाबिबेन ने नीलेश प्रियदर्शी को अपनी कला के बारे में व अपना आईडिया उनसे साँझा किया।

पाबिबेन रबारी महिलाओं के काम और उनकी कला को देश विदेश में पहचान दिलवाना चाहतीं थीं।

तब सब ने मिलकर पाबिबेन.कॉम नाम से वेबसाइट को स्थापित किया।

ऐसे नीलेश प्रियदर्शी ने पाबिबेन का समर्थन करने का फैसला लिया।

क्योंकी उनका मानना था की यह कारीगर प्रतीभाशाली हैं। उनके पास जो कमी थी वो थी, एक्सपोज़र की। 

पाबिबेन रबारी का पहला आर्डर

पाबिबेन ने देश के अलग-अलग शहरों में प्रदर्शनी लगाना शुरू किया।

उन्होंने पाबिबेन.कॉम को, अंतराष्ट्रिय बाज़ार में परिचय कराया।

इस वेबसाइट के जरिये इन्हें देश विदेश से orders आने लगे।

पाबिबेन रबारी को पहला आर्डर ७०००० रूपए का अहमदाबाद से मिला।

बस यह एक शुरुआत थी, और तब से पाबिबेन ने कभी पीछे मुड कर नही देखा।

व्यवसाय में वृधि के साथ उन्होंने अपने गाँव की कई महिलाओं को भी रोजगार दिया।

पुरस्कार – सम्मान – उपलब्धियां

पाबिबेन रबारी Meets Prime Minister Shri Narendra Mod
Pabiben Meets Prime Minister Shri Narendra Modi
(Pabiben Image-Source: https://www.pabiben.com/)
Pabiben-delivering speech in award function at Jankidevi Bajaj Puruskar
Pabiben-delivering speech in award function at Jankidevi Bajaj Puruskar
(Pabiben Image-Source: https://www.pabiben.com/)
  • भारत सरकार के एमएसएमई मंत्रालय द्वारा, एक सर्वश्रेष्ठ ग्रामीण उद्यमी पुरस्कार
  • 2020 में हस्तशिल्प के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी द्वारा स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया गया।
  • 2019 में FICCI द्वारा सम्मानित किया गया।
  • 2019 में इंडिया क्राफ्ट वीक में अंतर्राष्ट्रीय शिल्प पुरस्कार।
  • 2018 में ग्रामीण व्यवसाय में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार।
  • 2016 में आईएमसी लेडीज विंग जानकीदेवी बजाज पुरस्कार।
  • 2018 में वह बॉलीवुड फिल्म सुई धागा के प्रचार का हिस्सा थीं।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पाबिबेन को ग्रामीण कारोबार में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है।

पाबिबेन का कहना है कि इस पेशे में महिलाओं के लिए सबसे बड़ा लाभ यह है कि वे अपने घर का प्रबंधन कर सकती हैं, अपने बच्चों की देखभाल के साथ-साथ काम करना जारी रख सकती हैं।

पाबिबेन और उनकी टीम वर्तमान में ज्यादातर अपने विदेशी ग्राहकों के लिए उपहार बक्से को अनुकूलित करने में व्यस्त रहते हैं।

कोविद महामारी के बावजूद पिछले साल उनका सालाना कारोबार 30 लाख रुपये से अधिक था।

Pics Courtesy : Instagram Screengrab / kaarigarclinic, & Website Screengrab /https://www.pabiben.com/

और पढ़ें : Chinu Kala की Success Story | जेब में 300 रूपए लेकर घर छोड़ा, आज हैं करोड़ों की मालकिन

SHARE THIS

This Post Has 2 Comments

Leave a Reply

Disclaimer

Read More

This Blog has been designed after deep reflection and care with a motive to assist my valuable readers. Gyaansangrah intends to offer precise and updated information on various topics for general and commercial use. While our efforts are focused to provide you accurate data, there is a possibility of continuous updation of data from the original information provider and the same may not be reflected here. The content provided in the blog is only for informative purposes and collected from different sources across the Internet.
 
Gyaansangrah is not promoting or recommending anything here. Please verify the information before making any decisions. Gyaansangrah assumes no responsibility for any legal or financial implication in any case. Gyaansangrah aims to provide guidance and information to the readers. So, we advise the readers should do their own research for further assurance before taking any general and commercial decisions.

All the trademarks, logos and registered names mentioned in the blog belong to their respective intellectual property owners. There is no intent and purpose of violating any copyright or intellectual copyrights issues. Information presented in the blog doesn't imply in any case a partnership of Gyaansangrah with the Intellectual Property owner.
Further, information provided here can be subject to change without any notice and users are requested to check the original information provider for any clarifications.