संघर्ष में आदमी अकेला होता है
सफलता में दुनिया उसके साथ होती है
जिस जिस पर यह जग हँसता है
वो ही एक दिन इतिहास रचता है।
ऐसी ही कुछ कहानी है जिनकी हम आज बात करने जा रहे हैं। जिन्होंने संघर्ष भी अकेले ही किया है, जिन्हें लोगों ने ताने भी बहुत मारे हैं, लेकिन सभी मुसीबतों को पार करके उन्होंने वास्तव में इतिहास ही रचा है। वो और कोई नही वो हैं Kalpana Saroj. जिन्होंने ६० रुपए प्रति माह की कमाई से शरुआत कर 700 करोड़ रुपए का व्यापारिक साम्राज्य बनाया।

आपके समक्ष ऐसी कहानी रखने की, कुछ कोशिश की गई है, कि हो सकता है, इसे पढने से आपके भी जीवन में, सोचने का नजरिया बदल जाये। यह विशेषकर उन महिलाओं के लिए है, जो जीवन में कुछ बड़ा करना चाहतीं हैं, शायद यह पढने से कुछ मोटिवेशन मिले, बस यही मकसद से आप सब के लिए कल्पना सरोज की जीवनी, आपके समक्ष रख रहे हैं।
Kalpana Saroj का कठिन बचपन व पारिवारिक प्रष्ठभूमि
Kalpana Saroj का जन्म, सन १९६१ में महाराष्ट्र में अकोला जिले के एक छोटे से गाँव रोपर खेडा, के गरीब व दलित परिवार में हुआ था।
वो अपने माता-पिता, ३ बहन, २ भाई, दादा-दादी, व चाचा के साथ रहतीं थीं।
उनके पिता एक हवलदार थे, जिनकी पगार ३०० रूपए प्रति महा थी।
इस पगार में ही सबको गुजरा करना होता था।
अब आप खुद ही सोच सकते है, कि वो समय, कल्पना सरोज का कैसा रहा होगा।
उनकी पढाई भी ठीक से नही हुई थी।
उस ज़माने में लड़कियों को ज्यादा पढाया भी नही जाता था।
वो भी उनका दलित समाज से होना, तो सवाल ही नही उठता था।
उस समय लोगों का मानना था कि लड़कियां पढ़ कर क्या करेंगी?
आखिर उनको सुसराल जा कर घर ही तो संभालना है।
यहाँ तक की एक इंटरव्यू में सरोज जी ने खुद बताया कि, उनके मामा का मानना था, कि लड़कियों को पढाना ठीक तो है ही नही, बल्कि उनको ज्यादा दिन घर पे रखना, जहर की पुडिया घर पर रखने के सामान है।
कल्पना सरोज का प्रारम्भिक जीवन
जब वो १२ वर्ष की थीं, तब उनके मामा ने, उनके पिता के सामने उनकी शादी का प्रस्ताव रखा।
बदकिस्मती से उनको सुसराल भी अच्छा नही मिला।
उनको वहां भी बहुत प्रताड़ित किया गया।
१२ साल कि उम्र में, उनको अपने सुसराल में सभी सदस्यों का, अकेले खाना बनाना होता था।
यही नही घर की साफ सफाई भी उनको ही करनी होती थी।
यहाँ तक उनको मारा पीटा भी जाता था।
वहां उनकी जिन्दगी नरक से भी बत्तर हो गयी थी।
वो दर्द इतना भयानक था की आज भी वो अगर गलती से याद कर लेतीं है, तो वो सहर जाती हैं। और जब करीब ६ महीने बाद उनके पिता उनसे मिलने उनके सुसराल गए, तो वो अपनी बच्ची को देख कर स्तब्ध रह गए।
उनसे अपने बच्ची की वो दशा नही देखी गई, और वो वहां से उनको अपने घर ले आए।
आत्महत्या का प्रयास
- मायके आ जाने के बाद, उनके पिता ने उनको फिर से स्कूल भेजा, लेकिन उनका स्कूल में मन नही लगा, इनती छोटी सी उम्र में इतना दर्द जो झेला था। समाज ने भी उनको नही स्वीकारा, दोस्तों ने, रिश्तेदारों ने, किसी ने भी उनका साथ नही दिया, और न ही उनका हौसला बढ़ाया।
- इनता सहने के बाद, ऊपर से लोगो के ताने सुनने के बाद उनको लगा की यह जिंदगी सही नही है, उन्होंने सोचा मरना आसान है, जिंदगी जीना कठिन है।
- फिर उन्होंने सोचा कि क्यूँ न इस जिंदगी को ही ख़तम कर दें।
- उन्होंने एक दिन खटमल मारने वाली दवा की ३ शीशी पीली।
- उनको बड़ी मुश्किल से बचाया गया। जैसा की उनके पिता पुलिसे में थे, तो वहां के अफसरों ने अच्छे डॉक्टर की व्यवस्था करा कर, उनको बचा लिया।
टर्निंग पॉइंट
बचने के बाद जब लोग उनसे मिलने आते थे-
तब बहुत से लोग उनको यह बोलते थे :
- कि अगर तुम मर गई होतीं, तो तुम्हारे पिता पर क्या बीतती,
- बाद में सब यही बोलते कि जरूर इस लड़की ने कुछ कीया होगा, जिससे यह मर गई।
बस वो बात Kalpana Saroj के दिल में इस कदर बैठ गई, कि उन्होंने सोचा, अब वह कभी भी यह कदम नही उठाएंगी।
उन्होंने सोचा “की अगर कुछ करके मरना है, तो फिर कुछ करके जियेंगे क्यूँ नही”। उन्होंने पुलिस में जाने का सोचा लेकिन कम उम्र व पढाई के कारण वो नही जा सकीं।
Kalpana Saroj ने कई जगह कोशिश करी, लेकिन कम उम्र व पढाई के कारण नही बैठा।
उन्होंने तब अपनी माँ से मुंबई जाने के लिए जिद करी, कि वो मुंबई जा कर किसी भी कंपनी में सिलाई का काम करना चाहतीं हैं।
तब वो दादर में अपने चाचा के पास आ गईं।
वहां उनके चाचा की जानकारी की वजह से, चाचा उनको होजरी की कंपनी में ले गए।
जहाँ उनको सलाई मशीन पर बैठने के लिए बोला गया, लेकिन जैसे ही वो सिलाई के लिए बैंठीं, उनसे वो मशीन नही चली।
इतना सब (पुराना दर्द ) उनके दीमाग में घूम रहा था, की वो घबरा गई।
फिर उनके द्वारा बहुत मिन्नतें करने के बाद, वहां के मेनेजर ने, उनको एक्स्ट्रा धागा कटाई का काम दे दिया।
उनको उस काम के 2 रूपए प्रति दिन यानि 60 रुपय महिना मिलता था।
यह उनका पहला वेतन था।
जब उनका डर मन से निकल गया, तब एक महीने बाद, उनको सिलाई के लिए मशीन दी गई।
जिस काम को उन्होंने बखूबी निभाया।
तब उस काम के उन्हें महीने के 225 रूपए मिलने लगे।
बहन की मौत का सदमा
इसी बीच उन्होंने अपने परिवार को, अपने पास मुंबई बुला लिया।
उन्होंने एक सिलाई मशीन खरीद कर घर से भी सिलाई शुरू कर दी।
कुछ दिनों के बाद उनकी छोटी बहन बीमार हो गई।
तब पैसे न होने की वजह से वो अपनी बहन को नही बचा सकीं।
इस घटना ने उनको झकझोर के रख दिया।
तब उनको लगा की पैसा कमाना कितना जरूरी है।
उनको अहसास हुआ कि सिर्फ पैसा न होने की वजह से, वो अपनी बहन को नही बचा सकीं।
लोन लेकर सफलता की ओर कदम बढ़ाया
उस समय महाराष्ट्र सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना में, गरीब जरूरत मंदों को लोन प्रदान कराया जाता था।
Kalpana Saroj ने जब इस योजना के बारे में सुना, तो उन्होंने 50000 रूपए का लोन लिया।
उन्होंने उस पैसे से एक दुकान किराय से ले ली।
कल्पना सरोज ने वहां फर्नीचर का काम शुरू कीया।
उन्होंने सेकंड हैण्ड फर्नीचर खरीद कर बेचना शुरू कीया।
ऐसे धीरे-धीरे उनका काम चलता रहा।
लोन की इस प्रक्रिया को जब उन्होंने देखा
- कि लोन लेते समय कितनी परेशानी का सामना करना पड़ता है,
- तो इस सोच से उन्होंने एक संगठन बनाने की सोची।
- अगर कोई भी बेरोजगार युवा कुछ व्यापार करने की सोच रहा है-
- तो उसको इस योजनाओं से अवगत कराया जाये, और साथ ही उसको लोन भी उपलब्ध करवाने में मदद की जाये।
- इसी सोच को लेकर उन्होंने एक संगठन बनाया
- जिसका नाम उन्होंने सुशिक्षित बेरोजगार युवा संगठन रखा।
- इस संगठन के कारण लोग-बाग उनको जानने लगे थे।
- धीरे-धीरे उनकी ख्याती भी बढने लगी।
बड़ी कामयाबी हाथ लगी
एक दिन एक प्लाट का मालिक, अपना प्लाट बेचने उनके पास आया।
उस प्लाट पर बहुत सारे मुक़दमे भी चल रहे थे, जिसका उन्हें बाद में पता चला था।
उस प्लाट मालिक ने उनसे उस प्लाट के २.५ लाख रूपए मांगे।
लेकिन इतनी बड़ी रकम न होने की वजह से उन्होंने उसको मना कर दिया।
लेकिन उस प्लाट मालिक को पैसों की सख्त जरूरत थी।
इसलिए उसने सरोज जी से शुरू में १ लाख रूपए देने को कहा, बाकि का बाद में लेने के लिए राजी हो गया।
तब सरोज जी ने उसको १ लाख की कहीं से व्यवस्था कर, उसको दे दिए और वो प्लाट अपने नाम करवा लिया।
जैसा की यह जमीन विवादित थी, इसके ऊपर जितने भी मुक़दमे चल रहे थे, और जितने भी एक्ट लगे हुए थे, उन सभी को हटवाने में सरोज जी को करीब १.५ साल लग गया।
उन सभी केस और एक्ट के हटते ही उस जमीन की कीमत ५० लाख रूपए हो गई।
उनके इस साहस और मेहनत ने उनको यह सफलता दिलाई।
- अब उन्होंने ऐसा पार्टनर ढूंडा, जो उस प्लाट पर बिल्डिंग बनाये।
- क्योंकि बिल्डिंग बनाने के लिए उनके पास पैसे नही थे।
- उस पार्टनर से उन्होंने तय कीया कि बिल्डिंग बनाकर बेचने पर ६५% पार्टनर का होगा और ३५% उनका।
- तब उन्होंने उस बिल्डिंग को बेचने पर करीब ४.५ करोड़ रूपए कमाए।
इस तरह से कल्पना सरोज कदम दर कदम आगे बढती चलीं गई।
Kalpana Saroj का कमानी ट्यूब्स के स्वामित्व तक का सफ़र
कमानी ट्यूब्स भारत की पहली ऐसी कंपनी है, जिसकी वजह से सिका एक्ट (SICA- Sick Industrial Companies Act) तैयार कीया गया।
- सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार किसी कंपनी के वर्कर्स को मालिक बना दिया था।
- इस कंपनी पर 116 करोड़ रूपए का कर्जा था,
- और करीब 140 के आस पास केस चल रहे थे।
- इस कंपनी में 2 यूनियन थीं।
- 1987 में सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी के वर्कर्स को कंपनी चलाने के लिए मालिक बना दिया था।
- 1987 से 1997 तक वर्कर्स ने इसको जैसे तैसे चलाया।
- लेकिन ऐसे वर्कर्स के भरोसे कोई कंपनी कैसे चल सकती थी।
दो कंपनियों का पहले ही दिवालिया निकल चूका था। वो थीं
- कमानी इंजीनियरिंग और कमानी मेटल
अब कमानी ट्यूब्स भी उसी कगार पर थी।
तब सन 2000 में कुछ वर्कर्स जो कल्पना सरोज को जानते थे, उनके पास आए और कमानी ट्यूब्स की बागडोर सभालने के लिए जोर दिया।
तब काफी सोच विचार कर उन्होंने workers के हित को देखते हुए उन्होंने कंपनी को सँभालने के लिए हाँ बोल दी।
2000 से 2006 उनके लिए आसान नही रहा।
कंपनी के बोर्ड मेम्बेर्स ने Kalpana Saroj को प्रेसिडेंट नियुक्त कर दिया
अब सारी जिम्मेदारी उनके कन्धों पर आ गई। अब सारे फैसले उनके द्वारा ही लिए जाने थे। उन्होंने जो कंपनी के हित में थे, उनमे से कुछ जनों को साथ ले कर एक टीम बनाई। फिर उन्होंने देखा की ११६ करोड़ का जो कर्जा है, उसमे से ज्यादातर भाग तो ब्याज और पेनल्टी का है।
तब उन्होंने उस समय के वित् मंत्री, जिनके नीचे बैंकिंग आती है, उनसे मिलने का विचार बनाया।
उनसे मिलकर उन्हें सारी स्तिथी से अवगत कराया।
- उनको बताया कि पहले ही दो कंपनियां का दिवालिया निकल चूका है, और इस कंपनी की भी यही हालत है।
- अगर इस का भी, वो ही हाल होता है, तो जिन बैंकों का कर्जा है, वो एक भी रुपया उनको नही मिल पाएगा।
- अगर इस रकम का ब्याज व पेनल्टी माफ़ हो जाती है, तो मूल रकम उनको मिल सकती है।
उनकी बात को समझकर वित् मंत्री ने बैंकों के डायरेक्टर्स से उनकी मीटिंग रख वाई।
- तब बैंक के डायरेक्टर्स ने उनकी बात को समझा, और उनका ब्याज और पेनल्टी माफ़ कर दी।
- इतना ही नही वो Kalpana Saroj से इतने प्रभावित हुए, कि उन्होंने मूल रकम से भी 25% कम कर दिया।
Kalpana Saroj बनी कमानी ट्यूब्स की मालकिन
मार्च 2006 में कोर्ट ने कल्पना सरोज को, कमानी ट्यूब्स का मालिक बना दिया। और साथ ही आदेश भी दिया कि:
- 3 साल में उन्हें workers की सारी देय राशि देनी होगी,
- 7 साल में बैंकों का लोन चुकाना होगा।
- और 2011 तक SICA act से भी बहार निकलना होगा।
उन्होंने तीन महीनों में ही वर्कर्स का बकाया उन्हें वापिस दिया, और तय समय से बैंकों का भी ज्यादातर कर्ज उतार दिया।
2006 से 2009 तक कई मुश्किलों का सामना करते हुए, उन्होंने कंपनी को शुर्रू किया।
उन्होंने कंपनी को, वाडा एक जगह है, जहाँ उस कंपनी को शिफ्ट कीया।
कल्पना सरोज एक interview में बतातीं है कि, उनकी कंपनी 2011 में सिका एक्ट से बहार ही नही आई, बल्कि उनकी बैलेंस शीट पर जो 116 करोड़ का कर्जा था, वहां 4.5 करोड़ extra आ गये थे।
ऐसे करते-करते उन्होंने इस कंपनी को लाभदायक कंपनी में बदल दीया।
आज वो कई व्यापार से जुडी हुईं हैं।
तथ्य यह है कि आज वो कई सफल कंपनियों की मालकिन है,
आज वो 700 करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार संभालतीं हैं।
अब उनकी एक सफल उद्यमी के रूप में पहचान बन चुकी है।
पुरस्कार और मान्यता

- Kalpana Saroj जिस परिश्रम और आत्मविश्वास के साथ, कमानी ट्यूब को, उचाईयों तक लेके गईं है, उनकी इस उल्लेखनीय काम के कारण, व्यापार और उद्योग के लिए २०१३ में उनको “पद्म श्री” सम्मान से भी नवाजा गया।
- यही नही उन्हें सरकार ने भारतीय महिला बैंक के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में भी शामिल किया।
- वह भारतीय प्रबंधन संस्थान बैंगलोर में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में भी कार्यरत हैं, जो भारत में एक उच्च प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान है।

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अंतिम विचार
कैसे २ रूपए रोज कमाई करने वाली कल्पना सरोज, अपनी कठिन परिश्रम से आज यहाँ तक पहुँचीं हैं। उनकी यह कहानी वास्तव में कल्पना से परे है। उनकी कहानी हम सब को यही सीखती है कि जीवन में चाहे कितना भी कठिन समय क्यूँ ना आ जाए, आपको सकरात्मक भविष्य के लिए, और साथ ही अपने सपनो को पूरा करने के लिए, हमेशा दृढ रहना होगा। अगर हममें किसी भी काम को लेकर लगन, मेहनत, और जूनून होगा तो हम अपने डर और समस्याओं पर काबू पा सकते हैं।
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