मिलिए Sudha Murthy से जिन्होंने अपने सपनो को हकीकत में बदलने के लिए कई चुनौतियों का सामना किया। इन्होने अपने संघर्षों के माध्यम से साबित कर दिया, कि आत्मविश्वास और आशा हमेशा कायम रहती है। जिस दिन आप अपने सपनों को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प कर लेंगें, उस दिन से आप अपने सपनों को हकीकत में बदलता हुआ देखना शुरू कर देंगें।

अपने सपनों को पूरा करने की राह में, शायद हम सभी किसी न किसी मोड़ पर असफल हुए हों। यह असफलताएं विभिन्न आकार की या विभिन्न प्रकार की हो सकतीं हैं। किसी भी व्यक्ति को उसकी असफलता परिभाषित नही करती, बल्कि परिभाषित करती है, कि कैसे वो अपने सपनो के लिए, असफलताओं से लड़कर आगे बढ़ा।
हम आपके लिए Sudha Murthy की प्रेरक कहानी ले कर आए हैं, जिन्हें, अपने सपनो को हकीकत में बदलने के लिए, काफी संघर्षों से गुजरना पड़ा। इनकी प्रेरक कहानी आपको आपके सपनो को पूरा करने के लिए पर्याप्त साहस देंगीं।
Sudha Murthy का इंजिनियर बनने का सपना काफी संघर्ष के साथ पूरा हुआ
आप उन्हें इंफोसिस फाउंडेशन के प्रमुख के रूप में या गेट्स फाउंडेशन की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की भागीदारी के रूप में पहचानते है। लेकिन सुधा जी एक ऐसा उधाहरण हैं, कि कैसे किसी को अपने सपनो के लिए लड़ने की जरूरत है, चाहे उसे कितना भी संघर्ष क्यूँ ना करना पड़े।
Watch an #Exclusive Interview with Author & Founder @Infosys Foundation @sudhamurty on her Chapter ‘Then Came The Winds Of Change’ in the Book #Modi@20. Chapter captures India’s transformation from Independence to 1991 to the @narendramodi era.
— DD News (@DDNewslive) June 24, 2022
Tonight at 8:30pm on @DDIndialive pic.twitter.com/jP4nClBYJI
उनका इंजिनियर बनने का सपना काफी संघर्ष के साथ पूरा हुआ।
उस जमाने में (सन १९६०), इंजीनियरिंग एक ऐसा क्षेत्र था, जो केवल पुरषों के लिए ही उपयुक्त माना जाता था। एक महिला होने के नाते, ना तो उनके माता पिता और ना ही समाज, उनके सपने को पूरा करने देने के लिए तैयार था।
लेकिन Sudha Murthy तो जैसे अपने सपने को लेकर बहुत हठी थीं।
विज्ञान उनका पसंदीदा क्षेत्र रहा है। इंजीनियरिंग को चुनना, और उसके लिए कॉलेज में दाखिला लेना, सभी परिवार के लोगों को शोक में डाल चुका था। जब वो कॉलेज में अपने पिता के साथ दाखिले के लिए गईं, तो वहाँ के प्रिंसिपल को भी उनके पाठ्यक्रम में शामिल होने पर संदेह था।
कॉलेज के प्रिंसिपल ने, Sudha Murthy के पिता को व्यक्त करी अपनी चिंता
प्रिसिपल ने उनके पिता से कहा कि “ डॉक्टर साहब, मुझे पता है कि आपकी बेटी बहुत इंटेलीजेंट है, और उसको केवल योग्यता के आधार पर ही प्रवेश दिया गया है, लेकिन मुझे डर है कि कुछ समस्याएं पैदा हो सकतीं हैं”। क्यूँकी –
- सुधा मूर्ति कॉलेज में अकेली लडकी होंगीं।
- यह उनके लिए मुश्किल साबित हो सकता है।
- सबसे पहले तो इस परिसर में कोई भी महीला शौचालय नही है।
- उस परिसर में उनके आराम करने के लिए, महिलाओं का कमरा भी नही है।
दूसरा उन्होंने कहा की यहाँ के लड़के उग्र हार्मोन के साथ युवा हैं, और मुझे यकीन है कि यह लोग सुधा मूर्ति को परेशान कर सकते हैं।
Sudha Murthy ने विश्वविद्यालय में लड़कों द्वारा अनुचित व्यवहार सहन किया
- इस कॉलेज में अकेली महीला होने के कारण, उनके सहपाठियों ने उनका स्वागत भी नही किया।
- पूरे फर्स्ट इयर कोई भी उनसे नही बोला।
जैसा की सुधा मूर्ति जी जिक्र करती हैं
- कि कभी-कभी तो वो लोग उनकी पीठ पर कागज के हवाई जहाज बनाकर फैक देते थे।
- जिसमे लिखा होता था कि “एक महिला का स्थान रसोई में है, या चिकित्सा विज्ञानं में, निश्चित रूप से किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में तो नही है”।
- कई बार कुछ छात्र उन्हें देख सीटी बजाना चाहते थे, लेकिन वो उनकी तरफ ध्यान नही देतीं थी,
- और कई बार वो उनकी सीट पर नीली स्याही फेंक देते थे।
- उन्हें कई तरीके से परेशान किया जाता था।
समय के साथ-साथ वो जब अचंभित हो गईं, जब उनके अंक नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित किये गए।
- उन्हें गर्व था कि उन्होंने उन लड़कों को उन्ही के गेम में हरा कर उस विश्वविध्यालय में प्रथम रैंक प्राप्त की थी।
सुधा मूर्ति को अपने सपने को हकीकत में बदलने से कोई भी नही रोक पाया।
वह अपने सपनों के लिए लड़ीं और इंजिनियर बनीं।
— Sudha_murthy (@sudhamurty) May 14, 2022
जब Sudha Murthy ने JRD Tata को लिखी चिठ्ठी
उनके कॉलेज के दौरान जब एक बार प्रसिद्ध कंपनी टेल्को (जो अब टाटा मोटर्स के रूप में जानी जाती है) ने भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था, जिसमें युवा इंजिनियरों को काम पर रखने की बात कही गई थी।
लेकिन उस विज्ञापन में नीचे लिखा हुआ था कि “ महिला उम्मीदवारों कों आवेदन करने की आवश्यकता नही है”
- इस को पढ़ कर सुधा मूर्ति बड़ी आहत हुई।
- वो इस लैंगिक भेदभाव को नजर अंदाज नही कर सकीं।
- सुधा जी ने तुरंत ही टाटा समूह के अध्यक्ष (जहांगीर रतन जी दादाभाई) को सम्भोधित करते हुए अपना गुस्सा व्यक्त किया, और एक पत्र लिखा।
उन्होंने लिखा कि आप जो कर रहे हैं वो गलत है, क्यूँकी टाटा हमेशा समय से आगे है, और आप जानते हैं कि आपकी जैसी सामाजिक रूप से जागरूक कंपनी, महिलाओं की भरती करना बंद कर देती है, तो आप समाज में बदलाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?
- वो पत्र Mr. JRD टाटा को मिला।
- पत्र मिलने के बाद उन्होंने इससे सम्बंधित अपने स्टाफ मेम्बर को बुलाया।
- उन्होंने पूछा की आपने ऐसा कैसे किया?
- आप उस लडकी को इंटरव्यू के लिए बुलाएं, और तकनीकी रूप से उसका इंटरव्यू लें।
- अगर लगता है की वो इस लायक है तो आप उसको नौकरी दें।
- तब उस कर्मचारी ने बोला नही सर, यह प्रशिक्षण जमशेदपुर बिहार के लिए है।
- हम वहाँ एक लडकी को कैसे भेज सकते हैं?
- तब सर ने कहा पहले आप साक्षात्कार करें, और देखें की वो सक्षम है या नही।
- कुछ दिनों के अन्दर ही सुधा मूर्ति को टेल्को के तरफ से प्रतिक्रिया मिली और उन्हें साक्षात्कार के लिए पुणे बुलाया गया।
- सुधा मूर्ति ने अपना इंटरव्यू अच्छा किया, और उन्होंने सुधा जी से कहा, की यह नौकरी आपको मिल जायेगी।
महिला को ना रखने का कारण भी समझाया
- उन्होंने सुधा मूर्ति को समझाया, कि उन्हें कोई महीला क्यों नही चाहिए।
- तब उन्होंने कहा, क्यों महीला नही?
- क्यूँकी आप जानते है, कि यह एक शिफ्ट का काम था, जिसमे हम आमतौर पर शिफ्ट में महिलाओं को नही लेते हैं।
- यह एक Jojobera Plant है, जहाँ कोई भी महीला नही है। उन्होंने ऐसा कभी नही किया है।
- यहाँ श्रमिकों के साथ नियंत्रण, के साथ काम होता है।
- उन्होंने कहा, कि केवल एक ही महीला (इंद्रा गाँधी) ने, इस संयंत्र के दरवाजे में प्रवेश किया था, जब वो प्रधान मंत्री थीं।
- आगे उन्होंने बोला मै तुम्हें वहाँ प्रशिक्षण के लिए कैसे भेज सकता हूँ। यहाँ यह सब परेशानी है।
- सुधा मूर्ति को टेल्को ने काम पर रखा।
- और इस तरह वह कंपनी में पहली महीला इंजिनियर बनीं।
Sudha Murthy ने JRD Tata के धैर्य , उनके समय और उनकी सोच को लेकर उनकी सरहाना की
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि JRD Tata को पत्र लिखने में मेरी कोई महानता नही है। लेकिन यह JRD Tata की महानता है, कि उन्होंने एक लडकी द्वारा भेजे गए पोस्टकार्ड को पढ़ा। जो हुबली जैसे छोटे शहर से है, और उनसे पूछ रही है कि एक महीला इंजिनियर को भरती करने में क्या गलत है? उन्होंने कहा कि मैं अपने पत्र की तुलना में उनके धैर्य, उनके समय और उनकी सोच को महत्व देती हूँ।

इनफ़ोसिस को शुरू करने में किया संघर्ष
- १९७८ में उन्होंने नारायण मूर्ति से शादी रचाई।
- १९८१ में नारायण मूर्ति इन्फोसिस शुरू करना चाहते थे।
- उनके पास विज़न तो था लेकिन शुरू करने के लिए पैसा नही था।
- नारायण मूर्ति के कंप्यूटर सॉफ्टवेर की कंपनी शुरू करने के इस जूनून को देख, सुधा मूर्ति ने उन्हें १० हजार रूपए दिए और कहा की वो अपने सपने को पूरा करें।
- वित्तीय जरूरतों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी सुधा जी ने अपने ऊपर ली।
- 1981 में नारायण मूर्ति और छह साथियों ने पूरी रूचि और कड़ी मेहनत से, इन्फोसिस की शुरुआत करी।
- 1982 में सुधा मूर्ति ने टेल्को कंपनी को छोड़ दिया।
- अब वो मूर्ति के साथ पुणे चलीं गईं।
- लोन लेकर एक छोटा सा घर लिया जिसमें इन्फोसिस का ऑफिस भी बनाया।
- सुधा मूर्ति उस ऑफिस में घर के काम के साथ-साथ प्रोग्रामर के रूप में काम करने लगीं।
- घर को चलने के लिए उन्होंने वालचंद ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज में सीनियर सिस्टम एनालिस्ट के रूप में काम किया।
कम सुविधाओं के साथ उन सभी ने मिलकर कड़ी मेहनत से अपना-अपना सहयोग दिया, जिस वजह से कंपनी धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ने लगी।
नारायण मूर्ति का बड़ा फैसला
एक दिन नारायण मूर्ति ने फैसला लिया, कि उन दोनों में से सिर्फ एक ही उस कंपनी को संभालेगा।
उन्होंने सुधा मूर्ति से कहा कि अगर वो उस कंपनी में रहना चाहतीं है तो वो उस कंपनी से अपने आपको ख़ुशी ख़ुशी अलग कर लेंगें।
उन्होंने कहा की वो एक पति पत्नी की टीम नही चाहते हैं।
यह सुनकर सुधा मूर्ति को बड़ा धक्का लगा क्यूँकी उनके पास प्रासंगिक अनुभव के साथ तकनीकी योग्यता थी।
उनको यह सुन कर बड़ा दुःख हुआ कि जिस कंपनी को उनके पति बना रहे है, वो उस कंपनी में शामिल नही हो सकेंगीं।
नारायण मूर्ति के इस फैसले के पीछे के कारण को समझने में सुधा मूर्ति को कुछ समय लगा।
- बाद में उन्होंने महसूस किया की किसी भी कंपनी को चलाने के लिए अपना १००% देना होता है।
- अगर दोनों ही कंपनी में रहेंगें तो पीछे से घर और बच्चों को कौन संभालेगा।
- उनका मानना था कि एक कंपनी को संभालें, और दूसरा घर को।
- सुधा मूर्ति ने ग्रहणी बनने का विकल्प चुना।
- क्यूँकी इन्फोसिस उनके पति का सपना था।
इस तरह से सुधा मूर्ति ने एक बड़ा बलिदान दिया।
- आज भी नारायण मूर्ति मानते हैं, कि अपने सपने को बनाने के लिए उन्होंने सुधा मूर्ति के करियर पर कदम रखा।
- वो उनकी सफलता के पीछे सुधा मूर्ति को जिम्मेदार मानते हैं।
सुधा मूर्ति की कहानी हमे अपने सपनो को हकीकत में बदलने की प्रेणना देती है।
- हमे परिणाम की चिंता किये बिना कड़ी मेहनत जारी रखने के लिए प्रेरित करती है।
- क्यूँकी सफलता जभी मिलेगी जब आपके इरादे और दृढ़ संकल्प मजबूत हों।
उनके द्वारा लिखित पुस्तक – Three Thousand Stitches : Ordinary People to Extraordinary Lives

यह Three Thousand Stitches उनके द्वारा लिखित पुस्तक है। इस पुस्तक में ११ अलग अलग कहानियों का एक संग्रह है, जो उनके निजी जीवन से ली गई है। हरेक कहानी में कुछ ना कुछ सन्देश दिया गया है। मुख्य कहानी में यौनकर्मियों या देवदासियों के जीवन के बारे में है, कि कैसे सुधा जी ने अपने दृढ़ संकल्प द्वारा उन्हें आत्मनिर्भर बनाया और साथ ही उनके साथ जुड़े अपमान के लेबल से छुटकारा दिलवाने में मदद की।
और पढ़ें : Draupadi Murmu Biography | An Unbelievable Journey From a Small Village to Rashtrapati Bhawan
Pics Courtesy : Twitter Screengrab / DD News @DDNewslive, Sudha_murthy @sudhamurthy
Pics Courtesy : Instagram Screengrab / sudha_murthy-official
Website Screengrab /https:// https://timesofindia.indiatimes.com/, https://indianexpress.com/